उत्तराखंड:- उत्तराखंड में सख्त भू-कानून और मूल निवास प्रमाणपत्र के मसले पर उत्तराखंड में सियासत गर्म है। रविवार को पूरे प्रदेश से लोग परेड ग्राउंड में जुटे। वे वर्ष 2018 में तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार में उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था सुधार एक्ट में किए संशोधनों से बेहद नाराज हैं। उनकी नाराजगी 12.50 एकड़ से अधिक भूमि खरीदने का रास्ता पूरी तरह से खोलने के विरोध में हैं। उनका मानना है कि इससे सबसे अधिक नुकसान पहाड़ का होगा, जहां पर सीमित मात्रा में भूमि रह गई है।
उत्तराखंड के लोगों के विरोध के बाद अब उत्तराखंड में उद्योग के नाम पर 12.50 एकड़ से अधिक भूमि की खरीद की खुली छूट पर अंकुश लग सकता है। सख्त भू कानून बनाने के लिए पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में गठित समिति भी चार प्रमुख सेक्टर को छोड़कर बाकी सभी मामलों में 12.50 एकड़ से अधिक भूमि की खरीद की अनुमति के पक्ष में नहीं है। उसने इस संबंध में पूर्व में ही सरकार को अपनी सिफारिश सौंप रखी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी की अध्यक्षता में गठित उच्चस्तरीय समिति बड़े भू-भाग की खरीद के प्रावधान में बदलाव करने पर विचार कर सकती है।
स्वतः भू उपयोग परिवर्तन पर ही होगा विचार
लोगों की नाराजगी की दूसरी वजह बेतहाशा भूमि खरीदने वालों को स्वतः भू उपयोग परिवर्तन की दी गई छूट को लेकर भी है। एक्ट के तहत पहाड़ में उद्योग लगाने के नाम पर जो कृषि भूमि खरीदी जाएगी, उसे अकृषि कराने के लिए अलग से कोई प्रक्रिया नहीं अपनानी होगी। भू उपयोग परिवर्तन अपने आप हो जाएगा। इसे राज्य और खासतौर पर पर्वतीय हितों के खिलाफ माना जा रहा है। उच्चस्तरीय समिति इस प्रावधान पर भी पुनर्विचार कर सकती है।
डीएम से वापस लिए जा सकते हैं अधिकार
सुभाष कुमार कमेटी की एक सिफारिश यह भी है कि डीएम को कृषि व औद्यानिक प्रायोजन के लिए कृषि भूमि खरीदने की अनुमति देने का अनुभव सही नहीं है। समिति ने कई प्रकरणों में यह पाया था कि ऐसी अनुमति के नाम पर लोगों ने रिजार्ट और बंगले बनाए। माना जा रहा कि उच्चस्तरीय इस समिति की इस सिफारिश की गहराई से पड़ताल करेगी। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, समिति डीएम से अधिकार वापस लेने की सिफारिश भी कर सकती है।