उत्तराखंड:- पूर्व मुख्यमंत्री एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेता हरीश रावत उत्तराखंड के लिए नए भू-कानून बनाने के समर्थन में उतरे हैं। उन्होंने कहा कि दुख की बात यह है कि जहां भूमि बेचने के बारे में सोचा भी नहीं जाना चाहिए था, वहां की जमीन बिक रही हैं। इंटरनेट मीडिया पर अपनी पोस्ट में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने गत 24 दिसंबर, 2023 को कानून में संशोधन की मांग को लेकर रैली का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि रैली में उमड़े हुजूम का आम दर्द यही था कि कहीं ऐसा न हो कि हमें हमारी ही मिट्टी से अलग कर दिया जाए। हमारी थाती ही हमारे लिए पराई न हो जाए। मैं उन सब लोगों को जिन्होंने इस जुड़ाव के लिए आवाह्न किया बहुत-बहुत बधाई देता हूं।
हां, जितनी कसक उनकी आवाज में थी, उनके तारों में थी, जो दर्द उनके शब्दों में था, वह दर्द दो ऐसी लाइनों से गूंजायमान हो रहा था जिनको राज्य बनने के 23 साल बाद हमारी इच्छा सुनने की नहीं थी। हम चाहते थे उसका जो संशोधित सर्व स्वीकार्य रूप है हम उस रूप में उसको सुनें, हम चाहते थे कि वह शब्द हों “बोल उत्तराखंडी हल्ला बोल” ! पहाड़ को तो हमने राज्य आंदोलन के दिनों में ही एक समग्र हिमालयी पहचान जिसको उत्तराखंडी कहा गया उसमें समाहित कर दिया है और फिर दर्द केवल पहाड़ों में ही नहीं है, जिन लोगों का हुजूम उमड़ा था वह दर्द कहीं कुछ ज्यादा तो कहीं थोड़ा कम, मगर पूरे उत्तराखंड का शकल उत्तराखंडी दर्द है जिस तरीके से पहाड़ों की बेटी गंगा और यमुना ने पहाड़ से निकल कर, आगे बढ़कर, बढ़ते-बढ़ते गंगा-जमुनी संस्कृति को परवान चढ़ाने का काम किया। ण बनाना है।
हरीश रावत ने कहा कि केंद्र सरकार ने जब प्रदेश का नाम उत्तराखंड से बदलकर उत्तरांचल किया तो ऐसे ही पहचान के संकट से बेचैनी उत्पन्न हो गई थी। आज उत्तराखंड की पहचान का यह दर्द प्रदेश के हर क्षेत्र का है। उन्होंने कहा कि हर मुकाम पर एक उत्तराखंडी संस्कृति है जो हमारी साझी संस्कृति के रूप में गौरवान्वित करती है। जब जमीन ही नहीं रहेगी तो संस्कृति कहां से रहेगी। माटी में ही तो चीजें अंकुरित होती हैं। जब माटी नहीं रहेगी तो भूमिपुत्र कहां से रहेंगे। इस मिट्टी के सत्व की रक्षा के लिए उत्तराखंड को एकजुट रखना है।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि एक आंकड़े के अनुसार पिछले पांच वर्षों में एक लाख से अधिक रजिस्ट्री विभिन्न जिलों में अस्तित्व में आई हैं। उन्होंने सवाल दागा कि ये कौन लोग हैं, इसकी सूची जिलाधिकारियों के पास भी नहीं है। वनांतरा रिसॉर्ट आम बात हो गई है जो मन को कचोटती है।